(१) किसी भी रोग की शुरूआत में उपवास, मूँग का पानी, मूंग, परमल, भूने हुए चने, चावल की राब आदि लेना लाभकारक है।दवा लेने की यदि विधि न बताई गई हो तो वह दवा केवल पानी या शहद के साथ लें।
(२) भूखे पेट ली गई आयुर्वेदिक काष्ठ औषधि अधिक लाभदायक होती है। खाली पेट दोपहर एवं रात्रि को भोजन से पूर्व दवा लें किन्तु जहाँ स्पष्ट बताया गया हो वहाँ उसी प्रकार दवा लेने की सावधानी रखें ।
(३) सामान्य रूप से दवा चार घण्टे के अंतर से दिन में तीन बार ली जाती है।
(४) विविध दवाओं की मात्रा जब न बताई गई हो वहाँउन्हें समान मात्रा में लें।
(५) दवा के प्रमाण में जब अनिश्चितता हो, शंका उठे तब प्रारंभ में थोड़ी ही मात्रा में दवा देना शुरू करें। फिर पचने पर धीरे-धीरे बढ़ाते जायें या अनुभवी वैद्य की सलाह लें।
(६) वच, अतिविष, कुचला, जायफल, अरीठे जैसी उग्र दवाओं को सावधानीपूर्वक एवं कम मात्रा में ही दें।
(७) हरड़े खाना तो बहुत हितकारी है। भोजन के पश्चात् सुपारी की तरह तथा रात्रि को हरड़े अवश्य लेनी चाहिए। इसे धात्री अर्थात् दूसरी माता भी कहा गया है। लेकिन थके हुए, कमजोर, प्यासे, उपवासवाले व्यक्तियों एवं गर्भवती स्त्रियों को हरड़े नहीं खानी चाहिए ।
(८) आँवले का सेवन अत्यंत हितावह है। अतः भोजन के प्रारंभ, मध्य एवं अंत में नित्य सेवन करें ।
(९) प्रकृति के अनुकूल प्रयोग करें। भोजन के एक घण्टे बाद जल पीना आरोग्यता की दृष्टि से हितकर है।
(१०) दोपहर के भोजन के पश्चात् सौ कदम चलकर १० मिनट वामकुक्षि (बाँयीं करवट लेटना) करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
(११) दाँयें स्वर में भोजन एवं बाँयें स्वर में पेय पदार्थ लेना स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
(१२) भोजन एवं सब्जी के साथ फलों का रस कभी न लें। दोनों के बीच दो घण्टे का अंतर अवश्य होना चाहिए।
(१३) दूध के साथ कोई भी फल न लें ।
(१४) फलों का रस दिन के समय ही लें। रात्रि को फलो का रस पीना हितकर नहीं पिना चाहिए

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